भारत के विभिन्न हिस्सों में दशहरा पर्व को भव्य और श्रद्धा पूर्वक मनाया जाता है, लेकिन कुल्लू दशहरा का आयोजन हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में एक विशेष तरीके से किया जाता है।
इस पर्व की गहरी सांस्कृतिक और धार्मिक महत्वता है, जो इसे अन्य दशहरा समारोहों से अलग बनाती है। कुल्लू दशहरा की खासियत न केवल इसकी धार्मिक अनुष्ठानों में बल्कि इसके अनूठे सांस्कृतिक पहलुओं में भी छिपी हुई है।
इतिहास और परंपरा (Kullu dussehra festival 2024)
Kullu dussehra festival का इतिहास सदियों पुराना है और इसके मूल में एक गहरी धार्मिक मान्यता है। लगभग 1650 के आसपास, कुल्लू के राजा जगत सिंह गंभीर रूप से बीमार पड़ गए।
एक साधु बाबा ने उन्हें सलाह दी कि अयोध्या के त्रेतानाथ मंदिर से भगवान रघुनाथ की मूर्ति लाकर और उसके पवित्र जल से उनका इलाज किया जाए। 7 दिनों तक चलने वाले इस उत्सव की शुरूआत 16वीं शताब्दी से हुई थी और पहला दशहरा पर्व 1662 में मनाया गया था।
कई संघर्षों के बाद, भगवान रघुनाथ की मूर्ति कुल्लू में स्थापित की गई। राजा जगत सिंह ने यहाँ के सभी स्थानीय देवी-देवताओं को आमंत्रित किया, जिन्होंने भगवान रघुनाथ को सर्वोच्च देवता मान लिया। तभी से, देवताओं के मिलन के प्रतीक के रूप में दशहरा उत्सव हर साल कुल्लू में मनाया जाता है।
कुल्लू दशहरा मेले में रावण कुभकरण व मेघनाथ के पुतले नहीं जलाए जाते बल्की यह पर्व देवताओं के मिलन का प्रतीक है। ऐसा माना जाता है कि इस मेले को देखने के लिए देवलोक से स्वयं देवता धरती पर आते है।
कुल्लू दशहरा का आयोजन
कुल्लू दशहरा (Kullu dussehra festival) का आयोजन ढालपुर मैदान में होता है। यह उत्सव हर साल आश्वयुजा शुक्ल प्रतिपदा से शुरू होकर विजयदशमी तक चलता है। इस दौरान कुल्लू घाटी का पूरा माहौल एक विशेष उत्सव में तब्दील हो जाता है।
इस पर्व की शुरुआत रघुनाथ जी की पूजा से होती है, जिसके बाद पूरे शहर में उनका रथ घुमाया जाता है। इस दिन देवी हिडिम्बा का आगमन होता है।
इस समय कुल्लू की गलियाँ, घर और सड़कें रंगीन लाइट्स, झाँकियों और धार्मिक सजावट से सजी होती हैं। इस बार Kullu dussehra festival 13 से 19 अक्टूबर 2024 तक धूमधाम से मनाया जाएगा।
इस बार मुख्य आकर्षण क्या है?
मुख्य संसदीय सचिव (सीपीएस) श्री सुंदर सिंह ठाकुर, जो कि जिला स्तर के अंतर्राष्ट्रीय कुल्लू दशहरा आयोजन समिति के अध्यक्ष भी हैं, ने इस साल के त्योहार के लिए योजनाओं की जानकारी दी।
श्री ठाकुर ने कहा, “इस बार कई और देशों की भागीदारी सुनिश्चित करने के प्रयास किए जा रहे हैं, और हम एक विशेष fusion cultural सांस्कृतिक कार्यक्रम भी पेश कर रहे हैं।”
उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय नृत्य महोत्सव को प्रमुख आकर्षण के रूप में बताया और कहा, “यह कार्यक्रम विभिन्न देशों की समृद्ध सांस्कृतिक प्रस्तुतियों को और राज्य के लोक नृत्यों को एक साथ लाएगा।”
धार्मिक गतिविधियाँ
कुल्लू दशहरा (Kullu dussehra festival) का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा रघुनाथ जी की पूजा है। रघुनाथ जी को इस क्षेत्र में एक प्रमुख देवता माना जाता है और उनकी पूजा विशेष धूमधाम से की जाती है।
पूजा के दौरान रघुनाथ जी के रथ को भव्य रूप से सजाया जाता है और इसे नगर के विभिन्न हिस्सों में घुमाया जाता है। इस रथयात्रा के दौरान लोग धार्मिक गान गाते हैं, भजन करते हैं और रघुनाथ जी की आराधना करते हैं।
सांस्कृतिक गतिविधियाँ
कुल्लू दशहरा सिर्फ एक धार्मिक उत्सव ही नहीं है, बल्कि यह सांस्कृतिक गतिविधियों का भी एक बड़ा केंद्र है। इस दौरान स्थानीय लोग पारंपरिक परिधानों में सजकर विविध सांस्कृतिक गतिविधियों में भाग लेते हैं।
- नाटी और लोक नृत्य: कुल्लू दशहरा के अवसर पर “नाटी” और “डांडी” जैसे पारंपरिक लोक नृत्यों का आयोजन किया जाता है। ये नृत्य स्थानीय संस्कृति और परंपराओं को दर्शाते हैं। नाटी एक समूह नृत्य है जिसमें पुरुष और महिलाएँ पारंपरिक परिधानों में सजकर भाग लेते हैं। यह नृत्य उत्सव के माहौल को और रंगीन बना देता है।
- सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ: दशहरे के दौरान विभिन्न सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ भी आयोजित की जाती हैं। इनमें स्थानीय कलाकारों द्वारा प्रस्तुत किए जाने वाले नाटक, नृत्य और संगीत शामिल होते हैं। ये प्रस्तुतियाँ दर्शकों को न केवल मनोरंजन प्रदान करती हैं बल्कि स्थानीय संस्कृति और परंपराओं से भी रूबरू कराती हैं।
मेले और बाज़ार
Kullu dussehra festival के दौरान कुल्लू में एक विशाल मेला भी लगता है, जो पूरे क्षेत्र को एक विशेष रंगत प्रदान करता है। मेले में विभिन्न प्रकार के हस्तशिल्प, स्थानीय खाद्य पदार्थ और अन्य सामान बिकते हैं। यहाँ पर पर्यटकों को हिमाचल की विशेषताओं का अनुभव मिलता है और स्थानीय लोगों को अपनी संस्कृति और पारंपरिक वस्तुओं को प्रदर्शित करने का मौका मिलता है।
शाही जुलूस
कुल्लू दशहरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा शाही जुलूस है, जिसे विशेष धूमधाम से निकाला जाता है। इस जुलूस में विभिन्न देवी-देवताओं की पालकियाँ और झाँकियाँ होती हैं। इन झाँकियों में देवताओं की विविधता और उनके प्रतीकात्मक महत्व को प्रदर्शित किया जाता है।
शाही जुलूस के दौरान लोग पारंपरिक वेशभूषा में सजकर जुलूस में शामिल होते हैं और स्थानीय संगीत और नृत्य का आनंद लेते हैं।
स्थानीय जीवन और संस्कृति
कुल्लू दशहरा स्थानीय लोगों के जीवन का एक अभिन्न हिस्सा है। Kullu dussehra festival न केवल धार्मिक महत्व रखता है बल्कि यह सामाजिक और सांस्कृतिक एकता को भी प्रकट करता है। इस दिन लोग पारंपरिक परिधानों में सजकर एकत्र होते हैं, एक-दूसरे को बधाई देते हैं और खुशियाँ मनाते हैं।
यह त्योहार स्थानीय लोगों के आपसी प्रेम, भाईचारे और सामाजिक समरसता का प्रतीक है।
पर्यटन आकर्षण
कुल्लू दशहरा को देखने के लिए हर साल देश-विदेश से पर्यटक आते हैं। यहाँ की भव्यता, धार्मिक महत्व और सांस्कृतिक विविधता पर्यटकों को आकर्षित करती है। कुल्लू में दशहरा उत्सव का अनुभव करने से न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक समझ बढ़ती है बल्कि यह एक अद्भुत यात्रा अनुभव भी प्रदान करता है।
Kullu dussehra festival भारतीय संस्कृति और परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसकी धार्मिक मान्यता, सांस्कृतिक गतिविधियाँ और भव्य आयोजन इसे अन्य दशहरा उत्सवों से अलग बनाते हैं।
इस उत्सव का अनुभव करने से न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक शिक्षा प्राप्त होती है बल्कि यह स्थानीय लोगों की परंपराओं और जीवनशैली से भी परिचित कराता है।
Kullu dussehra festival एक ऐसा पर्व है जो धार्मिक श्रद्धा, सांस्कृतिक विविधता और सामाजिक एकता को संजोए हुए है और इसे मनाने का तरीका वास्तव में अद्वितीय है।
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